ठंडी-ठंडी सुबहों में घुल गई है
हल्की-सी गर्माहट,
जैसे किसी उदास चेहरे पर
छा जाए थोड़ी-सी मुस्कराहट.
जैसे घुप्प अँधेरे में दिख जाए
हल्की-सी किरण,
जैसे मनहूस ख़बरों के बीच
आ जाए कोई शुभ समाचार.
जैसे उजाड़ बगीचे में
खिल जाए कोई खूबसूरत फूल,
जैसे सूखे पेड़ पर
निकल आए कोई हरा पत्ता.
छोटी-सी ख़ुशी जो ज़रूरत पर मिले
बड़ी ख़ुशी से ज़्यादा अच्छी लगती है.
हल्की-सी गर्माहट,
जैसे किसी उदास चेहरे पर
छा जाए थोड़ी-सी मुस्कराहट.
जैसे घुप्प अँधेरे में दिख जाए
हल्की-सी किरण,
जैसे मनहूस ख़बरों के बीच
आ जाए कोई शुभ समाचार.
जैसे उजाड़ बगीचे में
खिल जाए कोई खूबसूरत फूल,
जैसे सूखे पेड़ पर
निकल आए कोई हरा पत्ता.
छोटी-सी ख़ुशी जो ज़रूरत पर मिले
बड़ी ख़ुशी से ज़्यादा अच्छी लगती है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-03-2016) को "ख़्वाब और ख़याल-फागुन आया रे" (चर्चा अंक-2273) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
छोटी-सी ख़ुशी जो ज़रूरत पर मिले
जवाब देंहटाएंबड़ी ख़ुशी से ज़्यादा अच्छी लगती है....!
saty vachan.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंbahut sunder kavita..
जवाब देंहटाएंMere blog ki new post par aapke vichaar ka swagat hai...
ये छोटी छोटी खुशियाँ हैं तभी तो जीवन है ... नहीं तो नीरसता घर कर लेती है ..
जवाब देंहटाएंBahut sahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंThanks & Welcome to my new blog post...