अच्छे लगते हैं मुझे आम के बौर,
सुन्दर से,मासूम से, नाज़ुक से
हरे पत्तों से झांकते पीले-पीले बौर.
कुछ बौर झर जाएंगे,
फागुन की तेज़ आँधियों में
या बेमौसम की बरसात में,
पर कुछ झेल लेंगे सब कुछ,
खेल-खेल में उछाले गए पत्थर भी
और बन जाएंगे खट्टी कैरियां
या मीठे रसीले आम.
ये कमज़ोर से बौर बड़े ज़िद्दी हैं,
लड़ लेते हैं मौसम से,
रह लेते हैं ज़िन्दा,
संभावनाओं से भरे होते हैं,
इसलिए बहुत अच्छे लगते हैं.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक 'डरावनी' कहानी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना " पांच लिंकों का आनन्द " पर कल रविवार 20 मार्च 2016 को http://www.halchalwith5links.blogspot.in पर लिंक की जाएगी । आप भी आइएगा.
जवाब देंहटाएंवाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
जवाब देंहटाएंAppsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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