top hindi blogs

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

१५३. सिलेबस बदलने का समय

अब सिलेबस बदल दो.

वर्णमाला,पहाड़े ज़रूरी नहीं हैं,
बाद में भी सीखे जा सकते हैं,
पहले उन्हें वह सब सिखाओ,
जो सीखना ज़रूरी है.

उन्हें सिखाओ
कि कोई बम उछाले
तो कैसे लपका जाता है,
खिड़की से बाहर कैसे फेंका जाता है,
कोई गोलियां चलाए,
तो कहाँ छिपा जाता है,
गोली लग जाए,
तो कैसे चुप रहा जाता है,
मरने का अभिनय किया जाता है.

परीक्षा की तैयारी बाद में भी हो जाएगी,
अभी तो ज़रूरी है
कि वे स्कूल के लिए निकलें,
तो न लौटने के लिए तैयार रहें,
यदि बच जाएं,तो साथियों की 
चीखें सहने को तैयार रहें.

पढ़ने की आदत ज़रूरी नहीं,
उन्हें आदत होनी चाहिए
कि शरीर के चिथड़े देख सकें,
खून के फव्वारे देख सकें.

अब सिलेबस बदलने के दिन आ गए,
अब यह सीखने के दिन आ गए
कि कम उम्र में कैसे मरा जाता है.

11 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. Ekdum steek ab yahi sikhana padega.... Samay ko dekhate hue...lajawAab...lajawaab

    जवाब देंहटाएं
  3. गहरा क्षोभ ... गहरी पीड़ा लिए हैं आपके शब्द ...
    हकीकत भरे शब्द ...

    जवाब देंहटाएं
  4. गज़ब तेवर और कलेवर लिए रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. सच ही कहा है आपने ,'अब सिलेबस बदलने के दिन आ गए,'

    जवाब देंहटाएं
  6. सच कहाँ अगर हमारी दुनिया का सच यहीं हैं तो फ़िर बच्चों के हाथों में कलम की जगह हथियार ही होंगे जिनके लिए हमें तैयैर रहना चाहिए।
    रंग-ए-जिंदगानी
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं