पेड़ों के पीछे से झांकता सूरज
कितना अच्छा लगता है माँ !
देखो, पत्ते हिल रहे हैं,
जैसे रोक लेना चाहते हों
सूरज की हर किरण,
पर सूरज है कि
पत्तों से छनकर
ज़मीन को छू ही लेता है.
ठीक ही तो है,
भला क्यों मिले सूरज
सिर्फ़ किसी एक को,
हर किसी के हिस्से में
उसकी किरण होनी चाहिए.
बस एक बात है माँ,
जो मुझे समझ नहीं आई -
आखिर एक ही सूरज
इतने पेड़ों के पीछे से
कैसे झाँक लेता है ?
यही है सृष्टि की लीला...
जवाब देंहटाएं...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंकैसा सहज कौतुहल है.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!
सादर
अनु
आपके कोमल विचार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-06-2014) को "बरस जाओ अब बादल राजा" (चर्चा मंच-1644) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह प्रतीक के माध्यम से बड़ी बात । सुन्दर रचना बधाई बन्धु।
जवाब देंहटाएंबढ़िया खूब !!
जवाब देंहटाएंएक रोचक कौतुहल बच्चे का लेकिन गहन अर्थ छुपाये...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहाँ एक ही तो सूरज नियंता है जीवन का। कृष्ण है ,सूरज ,कृष्ण पिंड है ब्लेक बॉडी है फिजिक्स में (भौतिकी शाश्त्र में ). ऊर्जित करता है धरती के हरित आँचल को ,जीवन को जगत को। आभार आपकी टिप्पणियों का।
जवाब देंहटाएंसहज और गहन अभिव्यक्ति .... !!
जवाब देंहटाएंगहन भाव ... एक ही सूरज जो सबमें प्रकाश पुंज बन के जल रहा है ...
जवाब देंहटाएंकितने सरल शब्दों में सुंदर बात..
जवाब देंहटाएं