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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

११५. घरौंदा

एक घरौंदा जो बचपन में  
हमने अधूरा छोड़ा था,
आओ, आज उसे पूरा करें.

ज़रा टूट-फूट गया होगा 
वह आधा-अधूरा घरौंदा,
थोड़ी सूख गई होगी
उसकी गीली चिकनी मिट्टी,
पर यह ऐसी दिक्कत नहीं 
जो दूर न हो सके.

ज़रूरत हो तो नई मिट्टी ले लें,
एक नया घरौंदा बनाएँ,
देखना, हमें वैसा ही लगेगा,
जैसा बचपन में लगता था,
फिर से वही खुशी मिलेगी,
वही सुख जिसका स्वाद 
हम भूल चुके हैं.

चलो, वह अधूरा घरौंदा पूरा करें
या एक नया घरौंदा बनाएँ,
चलो, छोड़ दें शर्म-झिझक,
अब भूल भी जांय 
कि हम बड़े हो गए हैं,
आओ, अतीत में लौट जांय,
एक बार फिर से बच्चे बन जांय.

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर... वास्तव में बचपन वापस जीने से सुखद और क्या हो सकता है।

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  2. बहुत सुन्दर.....घर बना रहे हमेशा1 गुलज़ार रहे...

    सादर
    अनु

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  3. चलो, वह अधूरा घरौंदा पूरा करें
    या एक नया घरौंदा बनाएँ,
    ..एक अदद घरौंदा की चाह सबको रहती हैं जिसमें सबके लिए जगह हो ..
    बहुत सुन्दर ..

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  4. प्रेम हो तो घरौंदा पूरा लगता है
    सुन्दर भाव भरी रचना !

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  5. मन तो करता है बच्चा होने का पर समय की बेड़ियाँ आड़े आ जाती हैं ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  6. आपकी लेखनी से निकल हर शब्द नये अर्थों को जीने लगता है

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  7. मन में एक बच्चा तो बसता ही है, झिझक दूर कर फिर से जी लेना है बचपना. सुन्दर भाव, बधाई.

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