बहुत थक गया हूँ मैं,
मुझे रोको मत, जाने दो.
मुझे विश्राम चाहिए,
अपने लिए नहीं, तुम्हारे लिए
ताकि तरोताज़ा होकर
मैं फिर लौट सकूं,
फिर हो सकूं तुम्हारे साथ,
फिर भगा सकूं अँधेरा.
वैसे तुम परेशान क्यों हो?
अँधेरे में ऐसा क्या है,
जिससे डरा जाय?
वह तो खुद डरपोक है,
वह तो खुद कमज़ोर है,
छिपा होगा यहीं कहीं
मेरे जाने के इंतज़ार में.
जैसे ही मैं जाऊँगा,
वह निकल आएगा,
तुम्हें डराने, सताने,
पर उसे भी पता है
कि मैं हारा नहीं हूँ,
बस थोड़ा थका हूँ.
उसे भी पता है
कि मैं शीघ्र लौटूंगा
और तब उसे
फिर से छिपना होगा.
सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंवैसे तुम परेशान क्यों हो?
जवाब देंहटाएंअँधेरे में ऐसा क्या है,
जिससे डरा जाय?
अच्छी पंक्तियां....
सादर....
बहुत सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya composuion.. bahut achhi lagi
जवाब देंहटाएंमन के भाव को लिखा है .. एक अवस्था जिससे पार पाता है इन्सान हमेशा ...
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