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बुधवार, 31 जुलाई 2013

९१.बचपन

कितना अच्छा होता है बचपन,
न कोई चिंता,न कोई फ़िक्र,
न कोई बोध अपमान का,
जो घर बना ले मन में,
न कोई घृणा का भाव,
जो खाता रहे खुद को ही,
न कोई गुस्सा, 
जो उबलता रहे मन-ही-मन,
फिर फट पड़े कभी अचानक.

काश कि बचपन कभी खत्म न होता, 
या बचपन में लौटना संभव होता,
या कम-से-कम इतना हो जाता 
कि आदमी पहले बड़ा होता,
फिर बूढ़ा
और अंत में बच्चा.

9 टिप्‍पणियां:

  1. सच...ऐसा होता तो क्या बात थी..
    सुन्दर रचना
    अनु

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  2. काश काश काश , लेकिन ऐसा हो तो नही सकता, बचपन के वो दिन और मस्ती कभी नही भुलाये जा सकते

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  3. बचपन .... हर उम्र में साथ होता है इक याद बनके ...

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  4. बचपन के दिन भी क्या दिन थे....

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