कितना अच्छा होता है बचपन,
न कोई चिंता,न कोई फ़िक्र,
न कोई बोध अपमान का,
जो घर बना ले मन में,
न कोई घृणा का भाव,
जो खाता रहे खुद को ही,
न कोई गुस्सा,
जो उबलता रहे मन-ही-मन,
फिर फट पड़े कभी अचानक.
काश कि बचपन कभी खत्म न होता,
या बचपन में लौटना संभव होता,
या कम-से-कम इतना हो जाता
कि आदमी पहले बड़ा होता,
फिर बूढ़ा
और अंत में बच्चा.
न कोई चिंता,न कोई फ़िक्र,
न कोई बोध अपमान का,
जो घर बना ले मन में,
न कोई घृणा का भाव,
जो खाता रहे खुद को ही,
न कोई गुस्सा,
जो उबलता रहे मन-ही-मन,
फिर फट पड़े कभी अचानक.
काश कि बचपन कभी खत्म न होता,
या बचपन में लौटना संभव होता,
या कम-से-कम इतना हो जाता
कि आदमी पहले बड़ा होता,
फिर बूढ़ा
और अंत में बच्चा.
काश ऐसा होता!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंसच...ऐसा होता तो क्या बात थी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
अनु
वाह..
जवाब देंहटाएंआनंद आ जायेगा :)
काश काश काश , लेकिन ऐसा हो तो नही सकता, बचपन के वो दिन और मस्ती कभी नही भुलाये जा सकते
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
कितना सरल, मासूम बचपन .....
जवाब देंहटाएंबचपन .... हर उम्र में साथ होता है इक याद बनके ...
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे....
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