बहुत सफाई-पसंद है गृहिणी,
रोज बुहारती है कूड़ा,
रोज लगाती है पोंछा,
छोड़ती नहीं घर का कोई कोना
जहाँ छिप सके ज़रा-सी भी गन्दगी.
चम-चम करता है गृहिणी का घर,
न कोई दाग, न कोई धब्बा,
पर जो उसके जीवन में बिखरा है,
वह कूड़ा कम ही नहीं होता,
बढ़ता ही चला जाता है.
ढूंढ नहीं पाई गृहिणी कोई झाड़ू,
जो हटा दे इस कूड़े को,
या थोड़ा कम ही कर दे,
कम-से-कम बढ़ने न दे.
झाड़ू लगाती गृहिणी सोचती है,
क्यों न वह एक तिनका निकाले
और उसकी आँखों में चुभो दे,
जिसने उसके जीवन में कूड़ा बिखेरा है,
पर गृहिणी रुक जाती है,
क्योंकि वह परमेश्वर है
और परमेश्वर के बारे में
ऐसा सोचना भी पाप है.
रोज बुहारती है कूड़ा,
रोज लगाती है पोंछा,
छोड़ती नहीं घर का कोई कोना
जहाँ छिप सके ज़रा-सी भी गन्दगी.
चम-चम करता है गृहिणी का घर,
न कोई दाग, न कोई धब्बा,
पर जो उसके जीवन में बिखरा है,
वह कूड़ा कम ही नहीं होता,
बढ़ता ही चला जाता है.
ढूंढ नहीं पाई गृहिणी कोई झाड़ू,
जो हटा दे इस कूड़े को,
या थोड़ा कम ही कर दे,
कम-से-कम बढ़ने न दे.
झाड़ू लगाती गृहिणी सोचती है,
क्यों न वह एक तिनका निकाले
और उसकी आँखों में चुभो दे,
जिसने उसके जीवन में कूड़ा बिखेरा है,
पर गृहिणी रुक जाती है,
क्योंकि वह परमेश्वर है
और परमेश्वर के बारे में
ऐसा सोचना भी पाप है.
अहा.....
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक और लाजवाब रचना.....
परमेश्वर से पंगा कैसे ले बेचारी स्त्री...
सादर
अनु
ओह .... मार्मिक रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: जिन्दगी,
Bahut sundar.
जवाब देंहटाएंबस यही तो नहीं कर पाती नारी और पिसती रहती है जीवन भर ...
जवाब देंहटाएंहिम्मत लानी होगी नारी को ...
बहुत मर्मस्पर्शी लाज़वाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंएक गृहणी के मन को दर्शाती ...बेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ! आँखें नम हो गईं...
जवाब देंहटाएंsharp satire and thats a reality..good work!!
जवाब देंहटाएं