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गुरुवार, 2 नवंबर 2023

७४१. कुर्सी-टेबल

 


उस घर में 

एक टेबल थी,

एक कुर्सी,

जब से मिले,

साथ-साथ थे

एक ही कमरे में. 


दोनों धीरे-धीरे 

पुराने हो गए हैं,

कुर्सी का एक हाथ, 

टेबल का एक पाँव 

अब टूट गया है. 


इन दिनों कुर्सी बरामदे में, 

टेबल आँगन में है,

उनकी जगह अब 

नई कुर्सी,नया टेबल है. 


दोनों अलग-अलग हैं,

दोनों बेचैन हैं,

दोनों चाहते हैं 

कि साथ-साथ रहें,

जब तक कि वे पूरी तरह

टूट न जायँ. 

 


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शनिवार 04 नवंबर 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. आपका सृजन सदैव गहनता समेटे होता है ।अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति । सादर वन्दे !

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  3. वाह... बहुत खूब👌👌

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  4. हमेशा की तरह, आप एक रोज़मर्रा की बात ले कर, उसे इतना खास बना देते हैं!

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  5. साथ में ही सजते और बिखरते हैं...घर के फ़र्नीचर भी...सुन्दर अभिव्यक्ति...👌👌👌

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  6. इशारे इशारे में आपने घर में मौजूद बुजुर्ग दंपति के मन की बात कह दी

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  7. दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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