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बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

६६८. दशहरा

 


दशहरे में जलता है 

पुतला रावण का,

पर ज़रूरी नहीं 

कि तीर चलाने वाला राम हो,

रावण भी जला सकता है 

अपना पुतला कभी-कभी 

ताकि कोई जान न पाए 

कि वह राम नहीं, रावण है. 

**

बड़ी भीड़ थी इस बार मेले में,

पता ही नहीं चला,

कौन राम था, कौन रावण,

कौन जल रहा था,

कौन जला रहा था. 

**

मेले में जाना है,

तो तमाशा देखने जाना, 

यह सोचकर मत जाना 

कि रावण जलेगा, 

भीड़ का क्या भरोसा 

न जाने किसको जला दे. 


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ... लाजवाब...👍👍👍

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. भीड़ का क्या भरोसा
    न जाने किसको जला दे.
    .. बहुत सारगर्भित रचना।

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