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शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

३४५.ठंड में बारिश


बारिश,  
बरसने से पहले
थोड़ा तो सोचा होता
कि अस्पतालों के बाहर
मरीज़ सो रहे हैं। 

थोड़ा तो सोचा होता
कि फुटपाथों पर
कुछ बच्चे, कुछ बूढ़े
कुछ महिलाएं, कुछ पुरुष
सो रहे हैं। 

बारिश
तुमने बहुत ग़लत किया
जो घरों से बाहर थे
तुमने एक बार फिर
उन्हें बेघर कर दिया।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अनायास ही लिखी ये पंक्तियाँ बेवजह नहीँ हैं। आपने सर्वथा उचित दोषारोपण किया है निष्ठुर बारिश पर, ये निष्प्राणों को भी नही छोडते।
    शुभकामनाएं आदरणीय ओंकार जी। लिखते रहें ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    बसन्त पंचमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. प्रकृति अपने हिसाब से चलती है, वो कहाँ सोचती कि दुनिया उसके कारण जीती भी है और मरती भी. सुन्दर रचना, बधाई.

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  4. बहुत सही, बारिश का क्या जव चाहे बरस पड़ती है

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