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शुक्रवार, 10 मार्च 2017

२५१.होली

होली में तुम्हें 
जो ख़त लिखने बैठा,
तो अचानक स्याही फ़िसल गई,
नीला हो गया सब कुछ- 
कुरता -पाजामा, उँगलियाँ -
और अपनी ही उंगलियों ने 
चेहरा भी रंग डाला थोड़ा-सा.

ऐसा लगा जैसे तुमने 
चुपके से रंग दिया हो मुझे.

ख़त तो मैं लिखूंगा ही,
पर जब तक तुम पढ़ोगी,
स्याही सूख चुकी होगी,
रंग नहीं पाएगी 
तुम्हारा कुरता,
तुम्हारी सलवार,
तुम्हारा दुपट्टा,
तुम्हारी उँगलियाँ.

पर ख़त पढ़ते-पढ़ते 
जब तुम्हारे चेहरे का रंग 
गुलाबी हो जाय,
तो समझ लेना 
कि मैंने तुम्हें 
और तुमने मुझे 
रंग दिया है,
समझ लेना 
कि हमारी होली 
आख़िर मन गई है. 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
    "आओ जम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बहादुर महिला, दंत चिकित्सक और कहानी में ट्विस्ट “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर। होली होली की हार्दिक शुभ कामनाएं।

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  4. सुन्दर शब्द रचना
    होली की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब ... नए और प्रेम का अंदाज़ तो यही होता है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. साथॆक प्रस्तुतिकरण......
    मेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....

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