आजकल मैं उलझन में हूँ.
देख नहीं पाता खुद को
आईने में,
सुन नहीं पाता
अपनी ही आवाज़,
रोक नहीं पाता खुद को
चलने से.
सोता हूँ,
तो लगता है,
जाग रहा हूँ,
जागता हूँ,
तो लगता है,
सो रहा हूँ.
आजकल मैं उलझन में हूँ,
अक्सर रात में
मैं उठ जाता हूँ,
तसल्ली कर लेता हूँ
कि मैं बस सोया हूँ,
अभी ज़िन्दा हूँ.
देख नहीं पाता खुद को
आईने में,
सुन नहीं पाता
अपनी ही आवाज़,
रोक नहीं पाता खुद को
चलने से.
सोता हूँ,
तो लगता है,
जाग रहा हूँ,
जागता हूँ,
तो लगता है,
सो रहा हूँ.
आजकल मैं उलझन में हूँ,
अक्सर रात में
मैं उठ जाता हूँ,
तसल्ली कर लेता हूँ
कि मैं बस सोया हूँ,
अभी ज़िन्दा हूँ.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"दो गज जमीन है, सुकून से जाने के लिये" (चर्चा अंक-2607)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 19 मार्च 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
जवाब देंहटाएंचर्चाकार
"ज्ञान द्रष्टा - Best Hindi Motivational Blog
सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंमन की ऐसी अवस्था आती है कभी कभी जीवन में ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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