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शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

२४७.पिता

पिता, कभी-कभी जी करता है 
कि कोई ज़ोर से डांटे,
पूछताछ करे,टोकाटाकी करे,
कहे कि आजकल तुम्हारे 
रंग-ढंग ठीक नहीं हैं.
घर से निकलूं तो कहे,
जल्दी वापस आ जाना,
देर से लौटूं तो कहे,
मेरी बात ही नहीं सुनते,
बिना कहे जाऊं तो पूछे,
कहाँ गए थे,
किसी के साथ जाऊं तो पूछे,
उसका नाम क्या है?

पिता, जब तुम पूछते थे,
तो सोचता था, क्यों पूछते हो,
अब तुम नहीं हो,
तो तरस गया हूँ,
उसी डांट-फटकार, टोका-टाकी,
पूछताछ के लिए.

पिता, तुम गए तो मैंने जाना
कि बड़ा होकर भी 
बच्चा होने का सुख 
आख़िर क्या होता है.

4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तीन सवाल - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 12 फरवरी 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।

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