आज सुबह बारिश हुई -
मूसलाधार बारिश,
भर गए सब खड्डे-नाले,
घुस गया पानी घरों में,
छिप गईं सड़कें,पगडंडियाँ,
रुक गया जैसे जीवन.
जब शाम हुई,
अस्त होते-होते मुस्करा उठा सूरज,
पानी की चादर पर बिखर गई
ढेर सारी गुलाल
या गुलाब की पंखुडियां,
धरती-आकाश रंग गए
एक ही रंग में.
कितनी भी कोशिश कर ले बारिश,
आख़िर मुस्करा ही उठता है सूरज,
कितना ही हो जाए विध्वंस,
रुकता कहाँ है उत्सव ?
समय तो चलता ही रहता है ... खुशियाँ हों तो गम और गम हो तो खुशियाँ कहाँ रूकती हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
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