एक नन्हा सा बच्चा,
अपनी धुन में मस्त
हँसता-खिलखिलाता,
दौड़ पड़ा बगीचे में
उस ऊँगली को छुड़ा
जिसने थाम रखा था उसको .
वहीँ कहीं बेपरवाही से पड़ा
एक गुलाब का काँटा
चुभ गया बच्चे के
छोटे कोमल पांव में.
बच्चा रोया, चिल्लाया,
साथ ही वह काँटा भी रोया.
कांटे ने कोसा ख़ुद को,
सोचा, चुभने से पहले
क्यों नहीं सोचता वह
कि कहाँ चुभना है.
बहुत कोशिश की कांटे ने,
पर निकल नहीं पाया
बच्चे के पांव से.
उसने दूसरे कांटे से कहा,
चलो, तुम्हीं मेरी मदद करो,
निकालो मुझे बच्चे के पांव से.
जो अपराध मैंने किया है,
उसका निराकरण
हम काँटों को ही करना है.
अपनी धुन में मस्त
हँसता-खिलखिलाता,
दौड़ पड़ा बगीचे में
उस ऊँगली को छुड़ा
जिसने थाम रखा था उसको .
वहीँ कहीं बेपरवाही से पड़ा
एक गुलाब का काँटा
चुभ गया बच्चे के
छोटे कोमल पांव में.
बच्चा रोया, चिल्लाया,
साथ ही वह काँटा भी रोया.
कांटे ने कोसा ख़ुद को,
सोचा, चुभने से पहले
क्यों नहीं सोचता वह
कि कहाँ चुभना है.
बहुत कोशिश की कांटे ने,
पर निकल नहीं पाया
बच्चे के पांव से.
उसने दूसरे कांटे से कहा,
चलो, तुम्हीं मेरी मदद करो,
निकालो मुझे बच्चे के पांव से.
जो अपराध मैंने किया है,
उसका निराकरण
हम काँटों को ही करना है.
जय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा....
दिनांक 15/05/2016 को...
चर्चा मंच पर...
आप भी चर्चा में सादर आमंत्रित हैं।
सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह ... काँटा ही कांटे को काटता है ... कमाल के भाव ...
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