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शनिवार, 6 जून 2015

१७२. पैसेंजर ट्रेन


मुझे पसंद है पैसेंजर ट्रेन,
धीरे-धीरे चलती है,
हर स्टेशन पर रूकती है,
हर किसी के लिए
दरवाज़े खुले रखती है.

यह एक्सप्रेस ट्रेन नहीं 

कि छोटे स्टेशनों को देखकर 
अपनी रफ़्तार बढ़ा दे,
प्लेटफार्म पर खड़े यात्रियों का 
मुंह चिढ़ाती हुई 
सर्र से निकल जाय.

पैसेंजर ट्रेन जल्दी में नहीं होती,

मुझे योगी-सी लगती है,
कोई भेदभाव नहीं करती,
मुझे अपनी-सी लगती है,
नहीं नोचती ज़ेब
कामगारों-मज़दूरों की,
सबका स्वागत करती है,
सबको जगह देती है.

मुझे पैसेंजर ट्रेन पसंद है,

मैं जब-जब इसे देखता हूँ,
मुझे महसूस होता है 
कि इसमें इंसानियत बहुत है.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2015) को "गंगा के लिए अब कोई भगीरथ नहीं" (चर्चा अंक-1999) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. बहुत ख़ूब, सुंदर भाव...सचमुच पैसेंजर ट्रेन जाति, धर्म, रंग के आधार पर भेदभाव किये बिना यात्रियों को उनके मंजिल तक ले जाती है.

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  3. बहुत सुन्दर। आम आदमी यहीं कहीं सवारी गाड़ी में सवार है।

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  4. लाजवाब अंदाज़ है देखने का ... ट्रेन के बहाने बहुत कुछ कह दिया आपने ...

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  5. सच में पैसेंजर ट्रेन और और आम आदमी में कितनी समानता है...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..

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  6. kise yogi or passenger train me koi fark nahi hai. sahi hai bahut sunder .

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  7. कभी पैसेंजर ट्रेन को इस नजरिये से नहीं देखा। आपकी नजर को सलाम करती हूं।
    ............
    लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!

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  8. बहुत बढ़िया सर जी
    अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर मैं आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हु मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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