मुझमें कुछ डालो,
तो ध्यान रखना,
मैं सब कुछ अपने में
समेटकर नहीं रखती.
ऐसा नहीं है
कि जो मैं रख लेती हूँ,
वही अच्छा होता है,
कभी-कभी जो अच्छा होता है,
उसे मैं निकाल भी देती हूँ.
जो मैं निकाल देती हूँ,
उसे ध्यान से देख लेना,
हो सकता है, वही अच्छा हो,
उसे फेंक मत देना
और जो मैं रख लेती हूँ,
उसे भी देख लेना,
हो सकता है कि कुछ ऐसा हो,
जो बिल्कुल बेकार हो.
आँख मूंदकर मुझ पर
भरोसा मत करना,
मैं जो रख लेती हूँ,
कभी अच्छा होता है,
तो कभी बुरा,
रखने-छोड़ने के मामले में
मैं बिलकुल तुम्हारे मन जैसी हूँ.
बढ़िया !
जवाब देंहटाएंदिमाग की चलनी से मन की इच्छाओं को चालना...अच्छा-अच्छा रखना, गंदा-गंदा फेंक देना बेहतर है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-06-2015) को "बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं" {चर्चा अंक-2006} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ख़ूब, सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna ..
जवाब देंहटाएंAti sunder aur sateek.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंbahut, bahut khoobsoorat!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... इस छलनी के माध्यम से जीवन दर्शन कह दिया ...
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