तुम्हारे आने की खबर सुनकर
लो, मैंने विदा कर दिया पतझड़,
समय से पहले बुला लिया वसंत,
कोमल हरे पत्ते ओढ़ लिए,
बिछा दी फूलों की चादर.
पथिक, तुम्हारे काम, तुम्हारे श्रम,
तुम्हारी सेवा-भावना को सलाम,
मंज़िल तक पहुँचने के तुम्हारे निश्चय,
तुम्हारे दृढ संकल्प को सलाम.
बहुत दूर से आ रहे हो तुम,
बहुत दूर जाना है तुम्हें,
थोड़ी देर को भूल जाओ सब कुछ,
थोड़ी देर सुस्ता लो मेरी छांव में,
पथिक, मुझ पर उपकार करो,
मेरा होना सार्थक करो.
आपकी लिखी रचना रविवार 13 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसेवा में ऐसी ही भावना होनी चाहिये...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सूफी और कलंदर
वृक्ष का पैगाम सिर्फ कहन नहीं , कर दिखाता है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
बहुत खूब ! मंगलकामनाएं . . . .
जवाब देंहटाएंपेड़ के मनोभाव खूब व्यक्त हुए...बधाई
जवाब देंहटाएंकाश हर किसी को अपने होने कि सार्थकता को पूरा करने का निश्चय हो ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ...