मैं ध्रुवतारा नहीं हूँ,
पर मुझे कमज़ोर मत समझो,
मैं उतना छोटा नहीं हूँ,
जितना ज़मीन से दिखता हूँ.
तुम्हें बरगला रही हैं
तुम्हारी अपनी सीमाएं,
ज़रा नज़दीक से देखो
तो तुम्हें पता चले
कि वास्तव में मैं क्या हूँ.
पर तुम कैसे नज़दीक आओगे,
कितना नज़दीक आओगे,
तुम्हारे नज़दीक आने की सीमा है.
दर्शक, तुम जहाँ हो, वहीँ रहो,
देखते रहो मेरा टिमटिमाना,
इसी सोच में खुश रहो
कि मैं कितना छोटा हूँ,
कितना प्रकाशहीन,
कितना बेबस!
पर मुझे कमज़ोर मत समझो,
मैं उतना छोटा नहीं हूँ,
जितना ज़मीन से दिखता हूँ.
तुम्हें बरगला रही हैं
तुम्हारी अपनी सीमाएं,
ज़रा नज़दीक से देखो
तो तुम्हें पता चले
कि वास्तव में मैं क्या हूँ.
पर तुम कैसे नज़दीक आओगे,
कितना नज़दीक आओगे,
तुम्हारे नज़दीक आने की सीमा है.
दर्शक, तुम जहाँ हो, वहीँ रहो,
देखते रहो मेरा टिमटिमाना,
इसी सोच में खुश रहो
कि मैं कितना छोटा हूँ,
कितना प्रकाशहीन,
कितना बेबस!
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
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बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंइसी सोच में खुश रहो
जवाब देंहटाएंकि मैं कितना छोटा हूँ,
कितना प्रकाशहीन,
कितना बेबस!
बेजोड़ अभिव्यक्ति
कुछ मेरे दिल की
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
जिसको जैसे खुशी मिले उसे में वो खुश रहे ... पर सत्य जाने बिना बोलना भी ठीक नहीं होता .. भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
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