सूरज निकलने के ठीक पहले
कितना अच्छा लगता है सब कुछ!
चहचहाने लगते हैं
घोंसलों से निकलकर परिंदे ,
रात भर की नींद से जागकर
कुनमुनाने लगते हैं बच्चे,
दिन के पहले आलिंगन को
बेताब हो उठते हैं नए जोड़े.
खेतों में निकल पड़ते हैं किसान,
सैर को निकल पड़ते हैं बूढ़े,
गूँज उठती हैं तरह-तरह की आवाजें,
फिर से जी उठता है जीवन.
सिन्दूरी हो जाता है
आसमान का एक कोना,
जैसे किसी ने उसके माथे पर
लाल टीका लगा दिया हो.
ऐसे में मुझे डराती है
अनिष्ट की आशंका,
ऐसे में मेरा मन करता है
कि आकाश के दूसरे कोने पर
एक काला टीका लगा दूं.
सुन्दर -
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी-
वाह......बेहद खूबसूरत!!!!
जवाब देंहटाएंशायद ये मेरी पसंदीदा कविता बन जाय.
सादर
अनु
बहुत सुंदर अहसास ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
bahut sundar bhavbhari rachana hai !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत गहरा एहसास ... नज़र अक्सर लग जाती है खुशनुमा माहोल को ..
जवाब देंहटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
जवाब देंहटाएंनिशंक इंसान रह ही नहीं पता .....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर और मनमोहक शब्द चित्र....
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