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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

५९.मैं और तुम

कभी-कभी मुझे लगता है 
कि मैं तुम्हारी तरह चलूँ,
तुम्हारी तरह हँसू,
तुम्हारी तरह सोचूँ,
तुम्हारी तरह बोलूँ,
क्यों न मैं तुम बन जाऊँ,
तुम्हें भी लगता है 
कि क्यों न तुम मैं बन जाओ.

देखो न, इस कोशिश में,
न मैं तुम बन पा रहा हूँ 
और न तुम मैं,
बल्कि मैं मैं नहीं रहा 
तुम तुम नहीं रही.

अच्छा होगा कि 
मैं बस मैं बना रहूँ
और तुम बस तुम.

मैं तुम बनूँ 
और तुम मैं 
इससे तो अच्छा है 
कि मैं और तुम
हम बन जाएँ.

10 टिप्‍पणियां:

  1. सच खा है .. हम बन जाएंगे तो अपनेपन का एहसास ही रहेगा बस ...

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  2. 'मैं' 'मैं' करने के बाद हम का ज्ञान मिला! क्या खूब मिला!!

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  3. वाह...
    एक दुसरे जैसा बनने की बजाय
    एक दुसरे के ही बन जाये..
    अति सुन्दर रचना..
    :-)

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  4. इससे तो अच्छा है
    कि मैं और तुम
    हम बन जाएँ....उम्दा भाव संजोये पंक्तियाँ,,,

    recent post: बात न करो,

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  5. एक भी हो जाएँ और दोनों की पहचान भी बनी रहे....

    बहुत सुन्दर ख़याल..

    सादर
    अनु

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  6. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  7. क्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.

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  8. आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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