सूरज, कहाँ-कहाँ से चले आते हो तुम
बेगाने घरों में अपनी किरणें बिखेरने,
दरवाज़ों,खिड़कियों, रोशनदानों से,
यहाँ तक कि छोटे-छोटे सूराखों से.
कितनी परवाह है तुम्हें ठिठुरनेवालों की,
कितने प्यार से लुटाते हो तुम ऊष्मा,
महल-झोंपड़ी, खेत-खलिहान, वन-उपवन,
कुछ भी तो नहीं है तुम्हारे स्नेह से परे.
जब कभी तुम कोहरे से घिर जाते हो,
कितना छटपटाते हो बाहर निकलने को,
अपनी बेबसी पर रोना आता होगा तुम्हें
ठिठुरनेवालों का ख्याल सताता होगा तुम्हें.
सूरज, तुम कभी थकते क्यों नहीं,
सूरज, तुम कभी रुकते क्यों नहीं,
ठिठुरनेवाले जब यहाँ कम्बलों में दुबके होंगे,
तुम कहीं और चमक रहे होगे.
सूरज,क्या अपने बारे में भी सोचा है तुमने,
क्या बांटने का तुम्हारा काम कभी खत्म होगा,
क्या अपने लिए भी कुछ बचाया है तुमने,
तुम्हारी दरियादिली की कोई तो सीमा होगी ?
बेगाने घरों में अपनी किरणें बिखेरने,
दरवाज़ों,खिड़कियों, रोशनदानों से,
यहाँ तक कि छोटे-छोटे सूराखों से.
कितनी परवाह है तुम्हें ठिठुरनेवालों की,
कितने प्यार से लुटाते हो तुम ऊष्मा,
महल-झोंपड़ी, खेत-खलिहान, वन-उपवन,
कुछ भी तो नहीं है तुम्हारे स्नेह से परे.
जब कभी तुम कोहरे से घिर जाते हो,
कितना छटपटाते हो बाहर निकलने को,
अपनी बेबसी पर रोना आता होगा तुम्हें
ठिठुरनेवालों का ख्याल सताता होगा तुम्हें.
सूरज, तुम कभी थकते क्यों नहीं,
सूरज, तुम कभी रुकते क्यों नहीं,
ठिठुरनेवाले जब यहाँ कम्बलों में दुबके होंगे,
तुम कहीं और चमक रहे होगे.
सूरज,क्या अपने बारे में भी सोचा है तुमने,
क्या बांटने का तुम्हारा काम कभी खत्म होगा,
क्या अपने लिए भी कुछ बचाया है तुमने,
तुम्हारी दरियादिली की कोई तो सीमा होगी ?
ऐसी ही दरियादिली इंसानों में भी होती, काश!! सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंसूरज,क्या अपने बारे में भी सोचा है तुमने,
जवाब देंहटाएंक्या बांटने का तुम्हारा काम कभी खत्म होगा,
... बहुत सही
सुंदर प्रस्तुतीकरण ....
जवाब देंहटाएंसशक्त रचना
जवाब देंहटाएंसूरज का धर्म है चमकना ... किसी भी हालात में चमकेगा ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना है आपकी ...
बेहतरीन प्रस्तुतीकरण,,,,लाजबाब रचना...बधाई ओंकार जी,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : समाधान समस्याओं का,
अति सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंहम सभी को सूरज बन चमकना चाहिए..
और अपनी रौशनी से सबको खुशिया देनी चाहिए..
:-) :-) :-)
अच्छी और भावपूर्ण सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंआशा