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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

७४८. शहर में रात

 


नाड़े-सी लटकती सड़कें,

बदहवास दौड़ती गाड़ियाँ,

अकेले टिमटिमाते बल्ब. 


झगड़ते कुत्तों के मुहल्ले,

बिलखती बिल्लियों की गलियाँ,

उचटती नींद से चिपके बदन. 


ऊँघते-से ट्रैफिक सिग्नल,

अनमने-से चेक-पोस्ट,

कुर्सियों पर फैली वर्दियाँ।


पटरियों पर बिछे लोग,

सिरहाने रखी गठरियाँ,

गठरियों में बँधे घर. 


खुलने को है सूरज की रक्तिम आँखें,

आने को है यंत्रणा का एक और दिन. 


9 टिप्‍पणियां:

  1. शहरों में निम्नवर्गीय परिवेश का मर्मस्पर्शी चित्रण ।बहुत सुन्दर सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. हृदयस्पर्शी सृजन ओंकार जी । सुबह होती है ,शाम होती है ,उम्र यूँ ही तमाम होती है ....

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  4. क्या खूब लिखा है, बहुत खूब। चंद शब्दों में कितना कुछ लिख दिया।



    लखनऊ शहर
    रात की एक बजाती घड़ी
    अगर घड़ी ने देखो
    तो समय का पता न लगे
    बिल्कुल वैसे जैसा की आपने लिखा
    बदहवास दौड़ती गाडियां..

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  5. शायद ही किसी के लिए सूर्य की किरणें यंत्रणा का सबब बनती हों, यदि बनती हैं तो ईश्वर उन्हें सद् बुद्धि दे

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  6. आपकी लेखनी बहुत ही शानदार है और एक बहुत ही अच्छा मेस्सगे आपने समाज में अपने शब्दों से दिया है , यकीनन आप पर विद्या की देवी सरस्वती की कृपा है .

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