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मंगलवार, 9 अगस्त 2022

६६०.सीलन

 


इस दीवार पर,

जो कभी सूखी हुई थी,

अब सीलन के धब्बे हैं,

जैसे बहुत देर रोकर 

पोंछ लिए हों किसी ने 

गालों पर ढलके आँसू. 

***

मैं घर छोड़कर गया था,

तो दीवार बिल्कुल सूखी थी,

अब इस पर सीलन के निशान हैं,

लगता है, मेरे पीछे से 

बहुत रोई है दीवार. 

***

इस सूखी दीवार में 

हल्की-सी सीलन है,

इसे रोकना ज़रूरी है,

सिसकी को न समझो,

तो रुलाई फूट जाती है.

***

बहुत दिनों से यहाँ 

कोई भी नहीं है, 

पर यहाँ की दीवारें 

सीलन से भर गई हैं,

लगता है,अच्छा नहीं लगा 

घर को अकेले रहना. 

***

उदास हो गया था घर,

मुझे भी अच्छा नहीं लगा  

उसे छोड़कर जाना,

मेरे आँसू सूख गए हैं,

घर की दीवारें अभी गीली हैं. 

***

थोड़ी-सी सीलन 

दीवारों पर रहने दो, 

अच्छा लगता है सोचकर

कि घर को मेरी ज़रूरत थी.   

 Photo: courtesy Dreamstime


10 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह मर्मस्पर्शी सृजन !

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  2. वाह! अनुपम अभिनव।
    संवेदनाओं से भरपूर।

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  3. बहुत सुंदर , हृदयस्पर्शी कविता। आभार।

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