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सोमवार, 6 जुलाई 2020

४५४. घर

House, Residence, Blue, House, House

नए घर में आई थी वह औरत,
बड़ा आरामदेह घर था वह,
हर कमरा हवादार था उसका,
धूप आती थी उसकी बालकनी में.

औरत ने सुन रखा था यह सब,
महसूस नहीं किया था कभी,
क्योंकि घर के किचन के बाहर 
उस औरत का कोई घर नहीं था.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को     "सयानी सियासत"     (चर्चा अंक-3756)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. उम्मीद है,
    जल्दी ही वह औरत
    ताज़ी हवा को
    महसूस करने का
    रास्ता ढूंढ लेगी ।
    हवादार खिड़कियां
    खुली रखेगी ।

    और जिनके लिए
    दिन रात एक कर
    रसोई बनाती है,
    वो भी एक दिन
    उसे रास्ता देंगे ।
    खिड़की दरवाज़े
    खुले रहने देंगे ।

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  4. क्या बात ... घर के किचन से बाहर उसने देखा कहाँ था ...
    बहुत गहरी बात ...

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  5. क्योंकि घर के किचन के बाहर
    उस औरत का कोई घर नहीं था. ये बात तो नश्तर सरीखी लिख आपने कविवर ! निशब्द हूँ !

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