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मंगलवार, 26 मई 2020

४३९. यात्रा

'रागदिल्ली' वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी कविता: 
मुझे नहीं देखने
शहरों से गाँवों की ओर जाते
अंतहीन जत्थे,

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-05-2020) को
    "घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं" (चर्चा अंक-3716)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. रचना पढ़ ली है। बहुत ही सटीक । एक संवेदनाओं से भरे मन के लिए , भयावहता लिएजीवन के वो मर्मांतक अनुभव देखना बहुत पीड़ादायक है। बहुत मार्मिक ही आपकी रचना , ओंकार जी 🙏🙏

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