मुझे याद आता है अपना गाँव,
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
मेरा बचपन बीता.
वहां की पगडण्डियां,
गलियां,चौराहे,
बैलगाड़ियाँ,लालटेनें,
मंदिर की घंटियाँ,
पान की दुकान,
छोटा सा रेलवे स्टेशन
और वहां के लोग याद आते हैं.
मैं चाहता हूँ
कि गाँव के लिए कुछ करूँ,
पर शहर के चंगुल में हूँ,
वह छोड़ता ही नहीं मुझे,
या शायद मैं ही नहीं छोड़ता उसे.
अकसर ख़यालों में
मैं अपने गाँव पहुँच जाता हूँ,
शहर में बैठकर
मैं गाँव पर कविता लिखता हूँ.
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
मेरा बचपन बीता.
वहां की पगडण्डियां,
गलियां,चौराहे,
बैलगाड़ियाँ,लालटेनें,
मंदिर की घंटियाँ,
पान की दुकान,
छोटा सा रेलवे स्टेशन
और वहां के लोग याद आते हैं.
मैं चाहता हूँ
कि गाँव के लिए कुछ करूँ,
पर शहर के चंगुल में हूँ,
वह छोड़ता ही नहीं मुझे,
या शायद मैं ही नहीं छोड़ता उसे.
अकसर ख़यालों में
मैं अपने गाँव पहुँच जाता हूँ,
शहर में बैठकर
मैं गाँव पर कविता लिखता हूँ.
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 25/05/2019 की बुलेटिन, " स्व.रासबिहारी बोस जी की १३३ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.... सही कहा आप न फ़स चुके हम शहर के चुंगल में ना वो हमें छोड़ता ना हम उसे.. दिल में गाँव और दिमाग़ में शहर... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
सही है आत्म प्रवंचना स्वीकारने का हौसला है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसच में शहर के जंगल से निकलना बहुत कठिन है। बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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