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रविवार, 19 नवंबर 2017

२८५.परिवर्तन


पत्तों से भरा सेमल का पेड़
ख़ुश था बहुत,
हवाएं उसे दुलरातीं,
पथिक सुस्ता लेते 
उसकी घनी छाया में,
फुदकते रहते पंछी 
उसकी हरी-भरी टहनियों में.

एक दिन पत्तियां गुम हुईं,
फूलों से लद गया सेमल,
जो भी देखता उसे,
बस देखता ही रह जाता,
फूला न समाता 
आत्म-मुग्ध सेमल.

पर ये दिन भी निकल गए,
अब न फूल हैं, न पत्ते,
न पक्षी हैं, न पथिक,
आज सेमल अकेला है,
बहुत उदास है सेमल.

इस बार जब पत्ते आएंगे,
सेमल उन्हें बाँहों में जकड़ लेगा,
गिरने नहीं देगा उन्हें,
सूखने नहीं देगा उनका रस.

इस बार जब फूल आएंगे,
सेमल ध्यान रखेगा उनका,
बिछड़ने नहीं देगा उन्हें,
बचाएगा उन्हें बुरी नज़र से.

इस बार जब फुदकेंगे पंछी,
सेमल उन्हें उड़ने नहीं देगा,
ओझल नहीं होने देगा उन्हें,
चौकसी करेगा उनकी.

सेमल नहीं जानता
कि ऐसा हो नहीं सकता,
ऐसा होना भी नहीं चाहिए,
सेमल नहीं जानता 
कि परिवर्तन ही नियम है,
परिवर्तन ही अच्छा है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-11-2017) को "खिजां की ये जबर्दस्ती" (चर्चा अंक 2793) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय ओंकार जी -- बहुत ही प्यारी रचना है सेमल पर | सेमल भले ही ऐसी कल्पना में सक्षम ना हो --------पर जहाँ ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि !! बहुत सुंदर कल्पना और भाव -------- सादर शुभकामना --

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  3. परिवर्तन की धार धीरे ही समझ आती है ...
    बहुत अच्छे से लिखा है ...

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  4. सेमल वृक्ष के मनोभावों का मानवीकरण बहुत सुंदर बन पड़ा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है यही परिवर्तन हमारे जीवन में खूबसूरती को बनाए हुए हैं। उत्कृष्ट रचना सीधा दिलो दिमाग पर असर करने वाली। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  5. परिवर्तन नियम है प्रकृति का....सेमल की प्रतीकात्मकता के माध्यम से परिवर्तन के इस नियम को बखूबी समझाया है आपने.....
    बहुत ही सुन्दर..।

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