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शनिवार, 21 जनवरी 2017

२४४. वे महिलाएं

बल्लियों के सहारे,
सिर पर बोझ लिए,
आसमान की ओर 
धीरे-धीरे बढ़ती 
दुबली-पतली महिलाओं को देखकर 
मुझे बड़ा डर लगता है.

कहीं बल्ली टूट गई तो,
कहीं पैर फ़िसल गया तो,
बुरे-बुरे ख्याल 
मन में आते हैं.

और उस वक़्त तो 
मेरा दिल धक्क से रह जाता है,
जब वे अपनी गरदन को 
हल्का-सा मोड़कर 
मुस्करा देती हैं.

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (22-01-2017) को "क्या हम सब कुछ बांटेंगे" (चर्चा अंक-2583) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर शब्द रचना
    गणत्रंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

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