गहरी काली रात,
न चाँद, न सितारे,
न कोई किरण रौशनी की.
चारों ओर पसरा है
डरावना सन्नाटा,
सिर्फ़ सांय-सांय
हवा बह रही है.
दुबके हैं लोग घरों में,
कुछ नींद में हैं,
तो कुछ होने का
नाटक कर रहे हैं.
लम्बी गहरी रात
अब ऊब रही है,
जाने को बेचैन है,
पर ख़ुद नहीं जायेगी.
ज़रा ध्यान से सुनो,
जिस रात से तुम सहमे हुए हो,
वह तुमसे कह रही है
कि सोनेवालों, उठो,
मुझे भगाने की पहल करो,
सूरज तुम्हारे दरवाज़े पर
दस्तक दे रहा है.
न चाँद, न सितारे,
न कोई किरण रौशनी की.
चारों ओर पसरा है
डरावना सन्नाटा,
सिर्फ़ सांय-सांय
हवा बह रही है.
दुबके हैं लोग घरों में,
कुछ नींद में हैं,
तो कुछ होने का
नाटक कर रहे हैं.
लम्बी गहरी रात
अब ऊब रही है,
जाने को बेचैन है,
पर ख़ुद नहीं जायेगी.
ज़रा ध्यान से सुनो,
जिस रात से तुम सहमे हुए हो,
वह तुमसे कह रही है
कि सोनेवालों, उठो,
मुझे भगाने की पहल करो,
सूरज तुम्हारे दरवाज़े पर
दस्तक दे रहा है.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 28 अगस्त 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूरज तुम्हारे दरवाज़े पर
जवाब देंहटाएंदस्तक दे रहा है......bahut sundar rachna
हर रात की सुबह होती है ... आशा का संचार करती हुई कविता !
जवाब देंहटाएंसुंदर!
~सादर
अनिता ललित
रात के आगे देखने का हौसला देती रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ....कविता पढ़वाने के लिए
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