क्या तुम बिनबुलाए
कहीं भी पहुँच जाते हो?
बिना दरवाज़ा खटखटाए,
बिना इजाज़त लिए
कहीं भी घुस जाते हो?
फिर मेरे जीवन में
कैसे घुस आए तुम
चुपचाप, बिना बताए?
कैसे जमा लिया आसन
तुमने मेरे मन में
बिना मेरी अनुमति के?
अब तुम निकलने से इन्कार करते हो,
जैसे कि यही तुम्हारा घर हो,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता
कि रहने दो मुझे अकेला,
छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर,
किस हक़ से चले आए तुम?
अब असहज रहकर ही सही,
मुझे तुम्हारी आदत हो गई है,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता
कि मेरे जीवन, मेरे मन से
घुसपैठिए, तुम निकल जाओ.
कहीं भी पहुँच जाते हो?
बिना दरवाज़ा खटखटाए,
बिना इजाज़त लिए
कहीं भी घुस जाते हो?
फिर मेरे जीवन में
कैसे घुस आए तुम
चुपचाप, बिना बताए?
कैसे जमा लिया आसन
तुमने मेरे मन में
बिना मेरी अनुमति के?
अब तुम निकलने से इन्कार करते हो,
जैसे कि यही तुम्हारा घर हो,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता
कि रहने दो मुझे अकेला,
छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर,
किस हक़ से चले आए तुम?
अब असहज रहकर ही सही,
मुझे तुम्हारी आदत हो गई है,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता
कि मेरे जीवन, मेरे मन से
घुसपैठिए, तुम निकल जाओ.
बहुत खूब,बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : हल निकलेगा
उत्प्रेरित करती पंक्तियाँ-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
खाली कक्षा पाय के, कर बैठे घुसपैठ ।
इतने विचलित क्यूँ हुवे, रहे व्यर्थ ही ऐंठ ।
रहे व्यर्थ ही ऐंठ , पलक पांवड़े बिछाओ ।
पल दो पल सुस्ताय, नाश्ता पानी लाओ ।
मीठी मीठी बात, सरस भावों की प्याली ।
समझ-बूझ हालात , लात ना खाओ खाली ॥
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंयादें जब इस तरफ घुसपैठिया बन आ जाती है तो उनका निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसाथ रहते रहते घुसपैठिये से भी प्रेम होना स्वाभाविक है.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..
सादर
अनु
कुछ यादें, कुछ डर, कुछ किस्से कुछ बातें यूं ही घुस आती हैं कभी न जाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...