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गुरुवार, 8 मार्च 2012

२५. इस बार की होली 


बहुत देर खड़ा रहा मैं
तुम्हारी खिड़की के नीचे,
पर न तुमने खिड़की खोली,
न गुब्बारा फेंका.


बड़ा इंतज़ार था होली का,
पर तुम्हारी बेरुखी ने 
पानी फेर दिया उम्मीदों पर
और मुझे पता भी नहीं 
कि बेरुखी कि वज़ह क्या थी.


बड़ी फीकी रही इस साल की होली,
बहुत डला अबीर-गुलाल,
पर मैं रँगा ही नहीं,
बहुत पड़े गुब्बारे,
पर मैं भीगा ही नहीं.

6 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा भी होता है...!
    मन भिगोने वाले रंग न हों तो अबीर गुलाल क्या कर लेंगे!

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति,अच्छी रचना ...
    ओंकार जी,...सपरिवार होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
    RECENT POST...काव्यान्जलि
    ...रंग रंगीली होली आई,

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  3. नमस्कार आप को होली की हार्दिक शुभकामनायें. होली रंगों का त्यौहार आप को सापेक्ष रंगीन बनावें और आपकी हर कामनाएं पूर्ण हो.
    मायूस न हों आपकी होली अवश्य खुशियाँ लेकर आएगी

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  4. मायूसी भरी रचना ... जब खिड़की खुल जाये उसी दिन होली समझ लीजिएगा :):)

    होली की शुभकामनायें

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  5. तन भीगा ....मन तो कोरा ही रहा.....
    मन पर चढ़ता नहीं कोई रंग दूजा....

    सुन्दर रचना..

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