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सोमवार, 15 अगस्त 2011

१. चली जाना 

जब आ ही गई हो
तो कुछ देर साथ चलो.

लो, मैंने छोड़ दिया तुम्हारा हाथ,
त्याग दिया मोह छुअन का,
बंद कर ली दोनों आँखें,
लालच क्या करना दीदार का ?

मुंह भी  रखूंगा बंद,   
परेशां न हो तुम
उन तमाम बातों से 
जो तुम्हें बेतुकी जान पड़े.

चलो, सांस भी नहीं लूँगा,
तुम्हारे बदन की खुशबू भी
नहीं पहुँच पायेगी मुझ तक.

अब तो ठीक है न,
चलो,जल्दी चलो,
बिना सांस के कब तक जिऊँगा,
जब गिर पडूँ तो लौट जाना.



















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