९.अकेला दिया
दिवाली की रात एक एक कर बुझ गए
वे सारे दिए जो मैंने शाम को जलाये थे,
एक अकेला दिया जलता रहा भोर तक,
बिना बाती, बिना तेल,
हांफते-कांपते, अपनी जीवन डोर थामे,
उचक-उचक कर देखता रहा,
आसमान में पूरब की ओर
कि सूरज निकला या नहीं.
ज़िद है उसकी कि नहीं बुझेगा,
लड़ेगा अँधेरे से अंतिम साँस तक,
देखेगा सूरज को आसमान में उगते,
अँधेरे को दुम दबाकर भागते
और फिर बंद करेगा अपनी आँखें.