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शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

817. पासवर्ड और कविता




मेरा पासवर्ड मेरी कविता की तरह है, 

मैं नहीं जानता उसका अर्थ, 

न ही वह मुझे याद रहता है। 


मेरे पासवर्ड में न लय है, 

न कोई मीटर,

मैं तो यह भी नहीं जानता 

कि उसकी भाषा क्या है,

भाषा है भी या नहीं।


फिर भी मैं जानता हूँ 

कि मेरे पासवर्ड में 

कुछ खोज ही लेंगे लोग, 

जैसे मेरे लिखे में 

कविता ढूँढ़ लेते हैं 

मेरे पाठक। 


मंगलवार, 22 जुलाई 2025

816. पासवर्ड

 



फ़ाइल बाद में बना लेंगे, 

पहले पासवर्ड बनाते हैं, 

छिपाने का इंतज़ाम करते हैं, 

बाद में तय करेंगे 

कि छिपाना क्या है। 

**

याद रखना पासवर्ड,

बस तीन मौक़े मिलेंगे,

कोई ज़िंदगी नहीं है 

कि बार-बार ग़लती करो 

और रास्ता खुला रहे। 


बुधवार, 16 जुलाई 2025

815. आइसक्रीम




आइसक्रीम वाला आता था,

तो आ जाते थे

मोहल्ले के सारे बच्चे,

यह उन दिनों की बात है,

जब फ़्रिज़ नहीं होते थे घरों में,

जब नहीं होती थी आइसक्रीम

सिर्फ़ आइसक्रीम.

++

वह बच्चा, जो रोज़ बेचता है

मोहल्ले में आइसक्रीम ,

अक्सर सोचता है,

अगर वह बेचनेवाला नहीं,

ख़रीदनेवाला होता,

तो वह भी खा सकता था

कभी-कभार कोई आइसक्रीम।

 

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

814. प्लेटफ़ॉर्म पर ट्रेन

 


ट्रेन,

इतनी देर क्यों रुकती हो तुम?

कोई तो नहीं चढ़ता यहाँ से,

किसका इंतज़ार है तुम्हें?

किस उम्मीद में जी रही हो तुम?


तुम्हारे पास तो कोई

कमी भी नहीं यात्रियों की,

भरी रहती हो हमेशा,

फिर वह कौन है, जिसके लिए

इतनी जगह है तुम्हारे दिल में,

जिसे कोई क़द्र नहीं तुम्हारी?


ट्रेन,

मेरी बात मानो,

किसी दिन बिना रुके चली जाओ,

झुककर तो बहुत देख लिया तुमने,

एक बार सिर उठाकर भी देखो ।


बुधवार, 2 जुलाई 2025

813. चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

 



न जाने कब से खड़ा हूँ 

इस भीड़-भरे प्लेटफ़ॉर्म पर,

ट्रेनें आती जा रही हैं 

कभी इस ओर से, 

कभी उस ओर से, 

रुक रही हैं ठीक मेरे सामने।


चढ़ रहे हैं यात्री 

अपनी-अपनी ट्रेनों में 

पहुँच ही जाएंगे गंतव्य तक,

पुराने यात्रियों की जगह 

आ गए हैं अब नए यात्री,

पर मैं वहीं खड़ा हूँ, जहां था। 


कब तक करूंगा इंतज़ार,

कब तक रहूँगा दुविधा में, 

अब चढ़ ही जाता हूँ 

किसी-न-किसी ट्रेन में,

चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी।