top hindi blogs

गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

791.घर

 



न जाने कौन रख जाता है 

बिस्तर पर कैक्टस, 

किसी भी ओर करवट लो,

चुभते ही रहते हैं कांटे। 


खाने की मेज़ पर बैठो, 

तो पहाड़ दिखते हैं, 

बारिश खूब हुई इस साल,

पर वह हरियाली नहीं है। 


हवाएँ जो घुस आती थीं 

खिड़कियों की दरारों से,

अब ठिठक जाती हैं बाहर, 

जबकि खुले रहते हैं दरवाज़े। 


सभी तो हैं घर में,

बस एक तुम नहीं,

तो घर घर-सा नहीं लगता।