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शनिवार, 20 जुलाई 2024

७७६.किताबें

 


किताबें, जिनसे बचपन में 

बड़ी दोस्ती हुआ करती थी मेरी,

अब अजनबी लगती हैं, 

वे तैयार हैं पढ़े जाने के लिए,

मैंने ही अनदेखी की है उनकी. 


इतना मसरूफ़ हूँ मैं दुनियादारी में 

कि उनकी ओर देखता तक नहीं,

जबकि वे अलमारी में बंद 

हर पल मुझे ताकती रहती हैं.


कभी-कभी मैं फ़ुर्सत में होता हूँ, 

पर किताबें नहीं पढता, 

यह मुझे वक़्त की बर्बादी लगता है,

बाक़ी सारे काम बेहतर लगते हैं.  


किताबें कहती हैं, 

तुमने रिश्ता नहीं निभाया,

इतना पास रखकर भी

हमें ख़ुद से इतना दूर रखा, 

कभी हमें पढ़कर तो देखो, 

तुम्हें देने के लिए 

हमारे पास कितना कुछ है.

 


5 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी की किताब जरूर पाठ पड़ा देती है मगर... :)

    काफी अंतराल के बाद हिंदी ब्लॉग टटोलने निकला हूँ। देख कर अच्छा लगा कि हिंदी के कॉफी ब्लॉग्स एक्टिव है और उनमें से ज्यादातर नए दिखते है। यह हिंदी ब्लॉगिंग और भाषा के सुखद भविष्य को आशान्वित करता है।
    लिखते रहिए.... शुभेच्छा सहित.... :)

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 22 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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