top hindi blogs

मंगलवार, 17 सितंबर 2024

६८४.नदी से

 


नदी,

क्यों उतर आई तुम पहाड़ से,

क्या मिला तुम्हें नीचे आकर?

वहां तो तुम अल्हड़ बहती थी,

यहाँ चलने को तरसती हो. 


सच है कि कभी-कभार 

तुम दिखा देती हो रौद्र रूप,

घुस जाती हो घरों में,

पर ये लोग फिर आएंगे,

अपने टूटे घर संवारेंगे,

कछारों में नए घर बनाएंगे.


ये तुम्हारा स्वागत कचरे से करेंगे,

तुमसे तुम्हारी गहराई छीन लेंगे,

तुम कृशकाय, हांफती-घिसटती 

किसी तरह आगे बढ़ोगी,

पर सागर बहुत दूर है,

पता नहीं, तुम वहां पहुंचोगी या नहीं. 


नदी,

पहाड़ों पर कितनी जीवंत थी तुम,

बेहतर की उम्मीद में तुमने 

अच्छे को छोड़ दिया,

कम-से-कम इतना तो सोचा होता 

कि चाहकर भी संभव नहीं होता

कभी-कभी वापस लौट जाना. 

 


मंगलवार, 3 सितंबर 2024

६८३. ये लौटकर नहीं आएँगे

 

कोरोना से संबंधित ५१ कविताओं का मेरा संकलन 'मौन की आवाज़' हाल ही में प्रकाशित हुआ है। यह अमेज़न पर उपलब्ध है। क़ीमत 49 रुपए है। इसी संकलन की एक कविता, 'ये लौटकर नहीं आएँगे':

**

ये जो मामूली-से बीमार लगते हैं,
मैं जानता हूँ, लौटकर नहीं आएँगे।

इनसे कहो, एक बार मास्क हटा लें,
डबडबाई आँखों से सब को देख लें,
दूर से ही सही, अंतिम विदा ले लें,
मैं जानता हूँ, ये लौटकर नहीं आएँगे।

कुछ दबा हो मन में, तो कह दें,
कोई आख़िरी इच्छा हो, तो पूरी कर लें,
इस घर, इस आँगन को निहार लें,
मैं जानता हूँ, ये लौटकर नहीं आएँगे।

सायरन बजाती एम्बुलेंस इन्हें ले जाएगी,
आवाज़ सुनकर लोग चौंकेंगे नहीं,
बस अपनी खिड़कियों से झांकेंगे,
मौत के डर से सिहर जाएंगे,
वे जानते हैं, ये लौटकर नहीं आएँगे।

ये जो मामूली-से बीमार लगते हैं,
लौटा दिए जाएँगे अस्पतालों से,
लावारिस सामान की तरह ठोकरें खाएंगे,
ऑक्सीजन की कमी से मारे जाएंगे,
सब जानते हैं, ये लौटकर नहीं आएँगे।