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गुरुवार, 30 मई 2024

७६९.मैं तुम्हें भूलूँ तो कैसे?

 


प्रिय, मैं तुम्हें भूलूँ तो कैसे?


सर्दियों का शर्मीला सूरज,

जब पत्तों के पीछे छिपकर 

ओस में भीगी घास को देखता है,

जब कमल की अधखिली कलियाँ 

पानी के कंधे पर सिर रखकर 

अनजानी ख़ुशी से कांपती है,

तो मुझे तुम याद आती हो. 


सांझ की निश्चिंतता में 

जब पक्षियों के झुण्ड 

अपने घोंसलों की ओर उड़ते हैं 

या समन्दर की लहरें 

बार-बार रूठकर भी 

साहिल की ओर लौटती हैं,

तो मुझे तुम याद आती हो. 


दूर कहीं चट्टान का कोई टुकड़ा 

जब नीचे की ओर खिसकता है 

या नदी की लहरों के टकराने से 

कोई किनारा टूटता है,

तो मुझे तुम याद आती हो. 


प्रिय,

सच में और स्वप्न में,

सुख में और दुःख में,

हर वक़्त तुम मेरे साथ हो,

मैं तुम्हें भूलूँ, तो भूलूँ कैसे?


शनिवार, 25 मई 2024

७६८. पानी में


 

मछलियां उछल रही हैं पानी में,

जाने क्या मज़ा है पानी में?


मदहोशी-सी छा गई मुझ पर,

ऐसा क्या मिलाया तूने पानी में?


डूबनेवाला भी वही, तैरनेवाला भी वही,

कुछ तो करिश्मा है नदी के पानी में. 


देखा नहीं कि प्यास बुझने लगी,

कोई तो बात है यहाँ के पानी में. 


हरेक बदल जाता है यहाँ आकर,

कुछ तो ख़ास है शहर के पानी में. 


कभी मुझे भी देना अचानक धक्का,

मैं भी देखूं, कैसे डूबते हैं पानी में. 


बिखेर देना मेरी राख खेतों में,

मुझे नहीं डूबना मरकर पानी में.  


जितना पिया, प्यास बढ़ती गई,

कुछ तो जादू था कुएँ के पानी में. 


डूबिए शौक़ से, गर चाहते हैं डूबना,

खींचिए मत किसी को अपने साथ पानी में. 


ऐसा भी क्या जीना कि बरसात से डरें,

फेंकिए छाता, भीगिए पानी में. 


बड़ा कमज़ोर था, जो हवा में उड़ता था,

डूबकर मर गया बित्ता-भर पानी में. 


बुधवार, 15 मई 2024

७६७.पानी

 


पत्थर वहीं रहता है, 

पर पानी बह जाता है, 

कहाँ वक़्त है उसके पास 

कि कहीं रुक जाए,

बहुत पत्थरों के ऊपर से 

गुज़रना होता है उसे,

बहुत-सी बाधाओं से 

निपटना होता है उसे.  


पत्थरों पर पानी के निशान

सन्देश हैं सभ्यता को 

कि मत बनो कठोर,

मत बनो अड़ियल,

पत्थर होकर रुकने से अच्छा है 

पानी होकर बह जाना. 




शनिवार, 11 मई 2024

७६६.आज़ाद

 


मेरे पाँवों में लोहे की बेड़ियाँ सही,

मेरे ख़्याल अब भी आज़ाद हैं,

जैसे नदी को बाँध लेने से 

चुप नहीं हो जाता उसका संगीत. 


मेरे चारों ओर दीवारें सही,

मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ, 

जैसे फूलों को क़ैद किया जा सकता है,

उनकी ख़ुश्बू को नहीं. 


मेरे बदन का हर हिस्सा मजबूर सही,

पर मेरे महबूब उदास न हो,

अभी ऐसी बेड़ियाँ नहीं बनीं,

जो पहनाईं जा सकें मन को,

ऐसा कारागार नहीं बना,

जो क़ैद कर सके भावनाओं को.