मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

786. काँटों की कमी



बेटी,

तुम फूल जैसी हो- 

सुंदर, सुगंधित, 

पत्ते जैसी हो-

कोमल, जीवंत, 

जड़ जैसी हो-

गहरी,मज़बूत,

तने जैसी हो-

बोझ उठानेवाली, 

डाली जैसी हो- 

हवा में फैलनेवाली। 


बेटी, 

तुम पूरा पेड़ हो-

जीवंत, छायादार, 

बस कुछ कांटे उग आएँ,

तो तुम सम्पूर्ण हो जाओ। 


7 टिप्‍पणियां:

  1. मानो कह रहे हों शंकर, गौरी ! तुम काली हो जाओ तो सम्पूर्ण हो जाओ

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 04 अक्बटूर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. वाह!!!
    बहुत सटीक...
    बेटियों की सम्पूर्णता के लिए काँटों की आवश्यकता है आजकल...
    लाजवाब सृजन।

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