चुप मत रहो, बोलो,
बोलना तुम्हारा कर्तव्य भी है,
तुम्हारा अधिकार भी।
तुम चुप रहोगे,
तो सबको लगेगा
कि तुम्हारे पास
कहने को कुछ नहीं है,
सब समझेंगे
कि दूसरे ही सही हैं,
जो बोल रहे हैं।
बहुत से लोग हैं,
जो बोलना चाहते हैं,
जैसे तुम चाहते हो,
वही बोलना चाहते हैं,
जो तुम चाहते हो,
पर तुम नहीं बोलोगे,
तो दूसरे भी नहीं बोलेंगे,
जैसे कि दूसरे नहीं बोलेंगे,
तो तुम भी नहीं बोलोगे।
तुम चुप रहोगे,
तो अपनी भाषा भूल जाओगे,
सोचना भूल जाओगे,
अपनी नज़रों में गिर जाओगे,
लोगों को लगेगा
कि तुम्हें ज़ुबान की ज़रूरत नहीं,
वह काट ली जाएगी,
तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
बहुत डर लगता है तुम्हें,
तो दबी ज़बान में ही बोलो,
इशारों-इशारों में ही बोलो,
बस चुप मत रहो, बोलो।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बोलो कि तुम मानव हो,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पास मन है
जो हर समय बोलता है,
फिर पहले सुनो मन की
और फिर बोलो
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमैं जब भी बोलूँगा, ख़ुद अपने लिए जेल के दरवाज़े खोलूँगा.
जवाब देंहटाएंकम बोलो मगर बोलो ज़रूर । बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंछुप मत सहो ... जैसे भी हो बोलो ... बहुत खूब ...
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