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बुधवार, 13 अगस्त 2025

818. ईश्वर से

 


ईश्वर, 

मुझे वह सब मत देना,

जो मैं मांग रहा हूँ, 

दे दोगे, तो और माँगूँगा, 

हो सकता है कि अगर तुम 

मांगा हुआ सब कुछ दे दो,

तो मुझे कुछ ऐसा मिल जाए,

जो मेरे लिए बेकार,

किसी और के लिए ज़रूरी हो। 


ईश्वर,

अपने विवेक का इस्तेमाल करना,

अपनी स्तुति पर मत रीझना,

प्रार्थना से मत पिघलना, 

ज़रूरत से थोड़ा कम देना,

बस उतना ही 

कि मैं छीन न सकूँ 

किसी और का हक़,

बना रहूँ मनुष्य। 



8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर
    बस उतना ही
    कि मैं छीन न सकूँ
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बहुत सुंदर प्रार्थना, ईश्वर ने मानव को विवेक पहले ही दे दिया है, ताकि वह अपना भला-बुरा सोच सके

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  4. प्रार्थना में हमारा स्वर भी जोङ लें..गहन अनुभूति ।

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  5. इतनी भर समझ, सब में हो जाए तो क्या बात है!

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