धीरे-धीरे कम हो रहा है
आपदा का पहाड़,
चार से तीन लाख,
तीन से दो,
दो से एक,
अब एक से कम.
साफ़ होने लगा है कुछ-कुछ
पहाड़ के पीछे का आसमान,
उड़ते दिख रहे हैं पंछी,
बन रहा है इंद्रधनुष.
ग़ायब हो जाएगा जल्दी ही
यह आपदा का पहाड़,
कितना ही ताक़तवर क्यों न हो,
ख़त्म तो होना ही है इसे.
हम कोशिश करेंगे
कि ऐसा पहाड़
फिर खड़ा न हो,
हो भी, तो उसकी ऊंचाई
एक पहाड़ी से ज़्यादा न हो.
आमीन ! मगर एक ड्सरे पहाड़ की खबर मिलने लगी है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह बहुत ही सुंदर अहसास ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन ।
ऐसे पहाड़ भी हमारे ही बनाए हुए हैं ! शायद अब सीख ले ली हो
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जवाब देंहटाएंआपकी दुआ के साथ हमारी भी दुआ शामिल है,परमात्मा करे ऐसा ही हो,मगर ये तभी होगा जब हम सब जागरूक रहेंगे , सादर नमन आपको
बेहद सकारात्मक पंक्तियां ओंकार जी....ग़ायब हो जाएगा जल्दी ही
जवाब देंहटाएंयह विपत्तियों का पहाड़,
कितना ही ताक़तवर क्यों न हो,
ख़त्म तो होना ही है इसे.
बहुत सुंदर सृजन
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जवाब देंहटाएंसाफ़ होने लगा है कुछ-कुछ
पहाड़ के पीछे का आसमान,
उड़ते दिख रहे हैं पंछी,
बन रहा है इंद्रधनुष. बहुत ही सार्थक सृजन ।
काश सब मिल कर कोशिश करें ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव