सुनो कवि,
तुम्हें नहीं सुनती कोई कराह,
तुम्हें नहीं सुनता कोई क्रंदन,
पर कितना आश्चर्य है
कि तुम्हें साफ़-साफ़ सुन जाती है
कोयल की कूक.
***
सुनो कवि,
तुम अंधे तो नहीं हो,
देख सकते हो,
बहरे भी नहीं हो,
सुन सकते हो,
फिर इस तांडव के बीच
कैसे लिख लेते हो तुम
कोई प्रेम कविता?
***
सुनो कवि,
मैं नहीं कहता
कि तुम मत लिखो,
लिखो,ख़ूब लिखो,
पर सच लिखो।
याद रखना,
तुम्हारी अपनी आँखें
तुम्हारी क़लम की ओर
टकटकी बांधे देख रही हैं.
वाह।
जवाब देंहटाएंतुम्हें नहीं सुनती कोई कराह,
जवाब देंहटाएंतुम्हें नहीं सुनता कोई क्रंदन,
पर कितना आश्चर्य है
कि तुम्हें साफ़-साफ़ सुन जाती है
कोयल की कूक. ---बहुत गहरी पंक्तियां हैं
सोच में जब भरा हो धुआँ ही धुआँ
जवाब देंहटाएंउनका सुनना भी क्या और सुनाना भी क्या !
वो जमीं के मसाइल न हल कर सके
चाँद पर फिर महल का बनाना भी क्या !----बहुत गहरी पंक्तियां हैं ...
वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुनो कवि,
जवाब देंहटाएंतुम अंधे तो नहीं हो,
देख सकते हो,
बहरे भी नहीं हो,
सुन सकते हो,
फिर इस तांडव के बीच
कैसे लिख लेते हो तुम
कोई प्रेम कविता?
वाह!!!
लाजवाब।
इस तांडव के बीच
जवाब देंहटाएंकैसे लिख लेते हो तुम
कोई प्रेम कविता?
लाजवाब
इस माहौल में लोग प्रेम और प्रकृति को पूरी ही तरह भूल गए हैं, जो कोरोना से पीड़ित हैं वही नहीं, जो स्वस्थ और सकुशल हैं वह भी। लोग अवसाद में ना चले जाएँ इसलिए प्रेम कविता लिखना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंसच , इस माहौल में कोई कैसे लिख सकता है प्रेम कविता । भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसच है तमाम हालातों से परे सच लिखने की ताकत एक कवि में होनी ही चाहिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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