सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

789. इस बार की दिवाली

 



पिछली दिवाली में 

जो थोड़े-बहुत फ़ासले

दिलों के बीच हुए थे,

इस दिवाली में आओ 

उन्हें दूर भगाएँ,

एक क़दम तुम बढ़ाओ,

एक क़दम हम बढ़ाएँ। 


बहुत कर ली हमने 

घरों की सफ़ाई,

अपने अंदर का 

कूड़ा हटाएँ,

थोड़ा दिलों को चमकाएँ। 


तुम अपनी बर्फ़ी

हमें खिलाओ,

हम अपनी नमकीन 

तुम्हें खिलाएँ,

थोड़े दिये तुम जलाओ,

थोड़े हम जलाएँ,

दो दिये ही सही,

साथ-साथ जलाएँ। 



छोटी-सी ज़िंदगी में 

इतना क्या रूठना,

इतना क्या गुस्सा 

इतनी क्या ज़िद,

अपनी बालकनी से 

तुम मुस्कुराओ,

अपनी छत से 

हम मुस्कुराएँ।



अंधेरा न रहे कहीं,

हर कोना जगमगाए,

इस बार दिवाली 

कुछ इस तरह मनाएँ। 



शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

788.आजकल

 




मैं तुमसे नहीं कहूँगा 

कि आजकल चाय बनाते वक़्त 

मेरे हाथ काँपते हैं,

यह भी नहीं कहूँगा 

कि आजकल मेरे घुटनों में 

बहुत दर्द रहता है.  


मैं तुमसे नहीं कहूँगा 

कि मुझे आँखों से 

धुंधला-सा दिखता है 

कि मैं कुछ भी चबाऊँ,

तो दाँत दुखते हैं. 


मैं तुमसे नहीं कहूँगा 

कि आजकल अकेले 

बाहर निकलने में 

मुझे डर लगता है,

कि  मुझे हर समय 

घेरे रहता है 

एक अजीब-सा अवसाद. 


मैं तुमसे नहीं कहूँगा 

कि आजकल मुझे 

चुभ जाती है 

हर किसी की बात,

कि मैं महसूस करता हूँ 

तन-मन से कमज़ोर. 


मैं नहीं चाहता कि तुम्हें 

खुलकर कुछ कहूँ,

पर मुझे अच्छा लगेगा, 

अगर यह जानकर 

तुम दुखी हो जाओ 

कि इन दिनों मेरी हालत 

कुछ ठीक नहीं है।


 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

787.दशहरा

 


दस सिर वाला रावण तो ले आए हो,

भीड़ भी जुट गई है, 

पर कौन करेगा उसका अंत,

राम तो कहीं दिखता ही नहीं. 


अब न एक लंका है, 

न सिर्फ़ एक रावण,

दसानन दिख रहे हैं हर तरफ़, 

अजेय लग रहे हैं वे, 

राम तो अब बचा ही नहीं. 


जाओ, पहले राम को खोजो,

इतना ताक़तवर बनाओ उसे 

कि अंत कर सके सारे रावणों का,

जिस दिन ऐसा हो जाएगा,

बुला लेना हमें,

उसी दिन मनाएंगे हम दशहरा. 


मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

786. काँटों की कमी



बेटी,

तुम फूल जैसी हो- 

सुंदर, सुगंधित, 

पत्ते जैसी हो-

कोमल, जीवंत, 

जड़ जैसी हो-

गहरी,मज़बूत,

तने जैसी हो-

बोझ उठानेवाली, 

डाली जैसी हो- 

हवा में फैलनेवाली। 


बेटी, 

तुम पूरा पेड़ हो-

जीवंत, छायादार, 

बस कुछ कांटे उग आएँ,

तो तुम सम्पूर्ण हो जाओ।