शनिवार, 30 सितंबर 2023

७३६.महात्मा

 


इतनी हिंसा,

इतनी नफ़रत,

इतना उन्माद!

बापू,

बहुत खलता है इन दिनों 

तुम्हारा नहीं होना. 

***

बापू,

कैसा लगता है तुम्हें, 

जब तुम देखते हो 

कि हमने तुम्हें याद भी रखा है

और भूल भी गए हैं. 

***

बापू,

तुम्हारे तीनों बन्दर 

सही सलामत हैं,

न बुरा देखते हैं,

न बुरा बोलते हैं,

न बुरा सुनते हैं, 

पर समझ में नहीं आता 

कि तुमसे अलग होकर

वे इतने ख़ुश क्यों हैं? 


शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

७३५. वक़्त मिले तो पढ़ लेना



तुम्हारे मोहल्ले की गलियों में,

इस शहर की सड़कों पर 

मेरे क़दमों ने जो लिखा है, 

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


खम्भे का सहारा लेकर  

तुम्हारी खिड़की को ताकते हुए 

मेरी आँखों ने जो लिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


तुम्हारे बंद दरवाज़े पर

दस्तक देते हुए

मेरी उँगलियों ने जो लिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


वह अकेला ख़त, जो मैंने 

सालों पहले तुम्हें लिखा था,

उसमें जो अनलिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 



सोमवार, 18 सितंबर 2023

७३४.अजीब बारिश

 



ये कैसी बारिश है?


पीले पत्ते शाख़ों पर हैं,

हरे झर रहे हैं,

पके फल पेड़ों पर हैं,

कच्चे टूट रहे हैं. 


ये बारिश है कि बूंदा-बांदी?

न कोई बादल,

न कोई गड़गड़ाहट,

बिजली की कौंध भी नहीं,

उम्र तमाम हुई,

पर देखी नहीं कभी ऐसी बारिश. 



आसमान से अचानक

गिर पड़ती हैं बूंदें,

न कोई सूचना,

न कोई संकेत,

न कोई चेतावनी. 


सूरज चमकता रहता है 

आकाश में बेशर्मी से,

देखता रहता है तमाशा,

झरती रहती हैं बूंदें,

पर नहीं बनता कहीं 

कोई भी इंद्रधनुष.


धुंधले पड़ते रहते हैं रंग,

गिरते रहते हैं पेड़ों से 

कच्चे फल और हरे पत्ते,

समझ में नहीं आता,

ये कैसी बारिश है? 

बुधवार, 13 सितंबर 2023

७३३. हिन्दी की गुहार

हिंदी दिवस के अवसर पर मेरी कविता ‘हिन्दी की गुहार’. इसमें हिंदी के विकास के लिए आदान- प्रदान के महत्व को रेखांकित किया गया है.

***
बंद मत रखो मुझे,
खुले में आने दो,
साँस लेने दो.

पहुँचने दो मुझ तक
हवाओं के झोंके,
बारिश की बूँदें,
सूरज की किरणें,
फूलों की ख़ुशबू ,
कोयल के गीत.

जानता हूँ मैं
कि यह तुम्हारा प्यार है,
जो मुझे बाँधता है,
पर वह प्यार ही कैसा,
जो जान लेकर माने,
ज़रा सोचकर देखो,
मुझे बचाने के लिए
तुम जो कर रहे हो,
वही तो मार रहा है मुझे.

मुझे ख़ुश रखना है,
फलते-फूलते देखना है,
तो दूसरों को मुझसे,
मुझे दूसरों से मिलने दो,
समय के साथ चलने दो,
बाँधो मत, मुझे बहने दो


शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

७३२. तुम्हारे जाने के बाद

 


हमारा यह छोटा-सा फ़्लैट 

तुम्हारे जाने के बाद 

बहुत बड़ा लगता है, 

तुम्हारा सामान तो उतना ही है,

पर लगता है, 

बहुत जगह घेरती थी 

तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी।

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बहुत साफ़ रहता है यह घर,

न कोई काग़ज़ फेंकता है,

न छिलका, न कुछ और, 

तुम्हारे जाने पर जाना 

कि इतनी सफ़ाई 

मुझे पसंद नहीं है. 

**

तुम्हारे जाने के बाद 

कुछ भी नहीं रहा पहले-सा,

घर तो वही है,

पर काटता बहुत है,

समझ में नहीं आता 

कि पुराना घर है 

या नया जूता?