गुरुवार, 31 अगस्त 2023

७३१.धागा

 


पत्थर टूट जाते हैं, 

चट्टानें दरक जाती हैं,

पहाड़ तक नहीं झेल पाता 

डायनामाइट का विस्फोट,

पर यह पतला-सा धागा 

न जाने कितना मज़बूत है 

कि कभी टूटता ही नहीं.  


हाँ, कभी-कभार उलझ जाता है, 

पर ज़रा-सी कोशिश से 

सुलझ भी जाता है,

जैसे घर की दीवार में 

हल्की-सी दरार आ जाए,

जो आसानी से पट जाय 

मुट्ठी-भर सीमेंट से. 


यह कोई धागा है 

या हरी-भरी घास है,

जिसकी जड़ें गहरी हैं,

जो लचक कर रह जाती है 

भयंकर आंधी-तूफ़ान में,

जिसमें धराशाई हो जाते हैं 

ऊंचे-ऊंचे पेड़.



सोमवार, 28 अगस्त 2023

७३०.पुराना नोट


 

मैं फटा-पुराना नोट हूँ, 

किसी को अच्छा नहीं लगता,

पर कोई फेंकता भी नहीं, 

सब जानते हैं मेरी क़ीमत. 

**

हमेशा इतना गंदा नहीं था मैं, 

कभी चमचम चमकता था, 

औरों के कारण ऐसा हुआ हूँ, 

कभी कड़क था मैं भी 

उतना ही, जितना तुम हो. 

** 

पुराने नोट ने नए से कहा,

इतना मत इतराओ,

मूल्य मेरा भी उतना ही है,

बस तुम शोर ज़्यादा करते हो.

मंगलवार, 22 अगस्त 2023

७२९.तब और अब

 


तब डाकिया लेकर आता था 

कभी-कभार कोई ख़त,

खिल उठता था दिल

साइकिल की घंटी सुनकर.


दौड़ कर जाते थे बाहर 

क़ाबू नहीं रहता था ख़ुद पर,

जल्दबाज़ी में लिफ़ाफ़े के साथ

अक्सर फट जाया करते थे ख़त. 


अब नहीं आता कोई डाकिया,

नहीं बजती कोई घंटी,

सैकड़ों मेल आते हैं दिन में,

कुछ तो खुलते ही नहीं, 

कुछ मारे शर्म के

ख़ुद ही घुस जाते हैं स्पैम में.


अब नहीं मिलती वह ख़ुशी,

नहीं रहा पहले-सा इंतज़ार,

समाचार तो अब भी आते हैं,  

पर मर गए हैं वे मीठे एहसास. 


गुरुवार, 17 अगस्त 2023

७२८. ‘घटना या दुर्घटना ?’

राग दिल्ली वेबसाइट (https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविता.


सालों बाद मिली हो तुम,

तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ,

आँखों के नीचे काले घेरे हैं,

वज़न थोड़ा बढ़ गया है,

चांदी-सी फैल गई है बालों में। 


मैं भी कहाँ रहा पहले-सा,

चलता हूँ, तो पाँव लड़खड़ाते हैं,

घुटनों में दर्द रहता है, 

आँखों से कम दिखता है,

बाल तो ग़ायब ही हो गए हैं।  


कहाँ सोचा था 

कि ऐसे भी मुलाक़ात होगी,

न तुम पहचानोगी मुझे,

न मैं पहचानूँगा तुम्हें।



तुमसे मिलकर अच्छा भी लगा 

और नहीं भी,

तुम्हें भी ऐसा ही लगा होगा,

समझ में नहीं आता 

कि हमारे मिलने को क्या कहूँ,

घटना या दुर्घटना?


गुरुवार, 10 अगस्त 2023

७२७.स्मृतियाँ

 


मुद्दतों बाद मिली हो तुम,

अच्छा तो लगा,

पर उतना नहीं,

जितना सोचा था. 


लगता है,

मुझे ज़्यादा अच्छा लगता है,

जब तुम मिलती हो

स्मृतियों में मुझसे,

शायद इसलिए 

कि तब डर नहीं होता 

तुम्हारे लौट जाने का. 


चलो,

अच्छा ही हुआ 

कि तुम आ गई,

पर लौट भी जाना

छोड़कर मेरे पास 

कुछ ताज़ा स्मृतियाँ.



शनिवार, 5 अगस्त 2023

७२६. पानी में

 


अभी कोई हलचल नहीं है पानी में,

अभी मत डालो नाव पानी में. 


वह मेरे साथ था भी और नहीं भी,

मैंने फेंक दी थी बात पानी में. 


क्यों किसी से लड़ना,किसलिए झगड़ना,

देख रहा हूँ मैं अपनी राख पानी में.


अभी तो यहीं तैरते देखा था उसे,

अचानक कैसे खो गया पानी में? 


वे जो मिले तो कुछ इस तरह मिले,

पानी जैसे मिल जाय पानी में. 



मंगलवार, 1 अगस्त 2023

७२५. रिश्ते

 


वह वही करती थी,

जो वह कहता था,

वैसे ही रहती थी,

जैसे वह रखता था,

वही बोलती थी,

जो वह चाहता था. 


मैंने कभी नहीं देखा उन्हें उलझते,

कभी नहीं खड़के उनके घर बर्तन,

रातों को शांत रहता था उनका घर,

कोई सिसकी नहीं आती थी वहाँ से. 


सालों बाद मैंने जाना 

कि दुःखी होने के लिए 

ज़रूरी नहीं होता रोना

और नहीं सिसकने का मतलब 

नहीं होता ख़ुश होना.