शनिवार, 30 मार्च 2019

३५२.खुले मैदान में लड़की


खुले मैदान में 
खिलखिलाती है लड़की,
कभी ज़ोर से,
कभी धीरे से 
गुनगुनाती है लड़की,
कभी उछलती है 
कभी नाचती है लड़की।

घर में गुमसुम सी 
रहने वाली लड़की,
ज़िंदा हो गई है 
आज मुर्दा-सी लड़की।

शनिवार, 23 मार्च 2019

३५१. तिनका


मैं छोटा सा तिनका हूँ,
कोई दम नहीं है मुझमें,
हवा मुझे उड़ा सकती है,
पानी बहा सकता है.

कोई चाहे तो आसानी से 
तोड़ सकता है मुझे,
टुकड़े कर सकता है मेरे.

पर मौक़ा मिल जाय,
तो मेरा छोटा-सा टुकड़ा भी 
उन आँखों को फोड़ सकता है,
जिनमें मेरा होना चुभता है.

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

३५०. दिसंबर में बारिश


बारिश,
यहाँ दिसंबर में न आना,
पहले से डेरा जमाए बैठी है ठण्ड,
यह चली जाय, तो आना.

अगर आओ भी,
तो मत बरसना फुटपाथ पर,
अस्पताल के गेट पर,
टपकते छप्परों पर.

अट्टालिकाओं पर बरस जाना,
महलों पर बरस जाना,
उन सारी छतों पर बरस जाना,
जिनके नीचे सोए लोगों तक
तुम तो क्या,
तुम्हारी आवाज़ भी नहीं पहुँचती।

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

३४९. पैसेंजर ट्रेन


मैं पैसेंजर ट्रेन हूँ,
हर गाँव, हर कस्बे से 
मुझे प्यार है.

ठहर जाती  हूँ मैं 
हर छोटे बड़े स्टेशन पर,
हालचाल पूछती  हूँ,
फिर आगे बढ़ती  हूँ.

लोग जल्दी में हैं,
बिना वक़्त गँवाए 
मंज़िल पा लेना चाहते हैं.

उन्हें मैं नहीं,
एक्सप्रेस गाड़ी पसंद है,
जो गाँवों-कस्बों से दुआ-सलाम में 
बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं करती।

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

३४८. ब्रह्मपुत्र से


ब्रह्मपुत्र,
बहुत दिनों बाद मिला हूँ तुमसे,
कुछ सूख से गए हो तुम,
कुछ उदास से लगते हो,
कौन सा ग़म है तुम्हें,
किस बात से परेशान हो?

अब पहले जैसे गरजते नहीं तुम,
चुपचाप बहे चले जाते हो,
तट पर बसे लोगों से उदासीन,
जैसे नाराज़ हो उनसे।

ब्रह्मपुत्र,
बहुत ग़लतियाँ हुई हैं हमसे,
पर हम तुम्हारी ही संतान हैं,
चाहो तो डुबा दो हमें,
पर पहले की तरह ठठाकर बहो,
हमसे यूँ मुंह न मोड़ो।